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      शेख हसीना 

लोकतंत्र की मसीहा से तानाशाही तक का रोचक सफर

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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना  ने छात्रों द्वारा किए गए प्रदर्शनों के बाद इस्तीफा दे दिया और देश छोड़ दिया।

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76 वर्षीय हसीना ने सोमवार को हेलीकॉप्टर से भारत के लिए उड़ान भरी, जब हजारों प्रदर्शनकारियों ने उनके सरकारी आवास पर धावा बोला।

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शेख हसीना 2009 से प्रधानमंत्री के पद पर थीं और कुल मिलाकर 20 से अधिक वर्षों तक बांग्लादेश पर शासन किया।

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उन्होंने  अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत लोकतंत्र समर्थक के रूप में की थी और उनकी पहचान एक प्रजातंत्र समर्थक नेता के रूप में हुई थी।

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हाल के वर्षों में हसीना पर तानाशाही के आरोप लगे और उन्होंने विपक्ष को दबाने के लिए कड़े कदम उठाए।

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जनवरी में हुए चुनाव में हसीना ने चौथी बार प्रधानमंत्री पद जीता, जिसे उनके आलोचकों ने 'धांधली' करार दिया और मुख्य विपक्षी दल ने बहिष्कार किया।

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1947 में पूर्व बंगाल में जन्मी हसीना, स्वतंत्रता संग्राम के नेता शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता का नेतृत्व किया। 

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हसीना ने भारत में निर्वासन के बाद 1981 में बांग्लादेश लौटकर अपने पिता की पार्टी, अवामी लीग, का नेतृत्व संभाला और 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनीं।

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उनके  शासनकाल में बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति की, जिसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं।

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हाल के प्रदर्शनों ने उनकी सरकार के खिलाफ सबसे गंभीर चुनौती पेश की, जिसमें कई प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई घायल हुए। 

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शेख हसीना पर मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप लगे, जिसमें जबरन गायब करने, न्यायेतर हत्याओं और मीडिया पर दबाव डालने जैसे मामले शामिल हैं। 

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अंतर्राष्ट्रीय  मानवाधिकार संगठनों ने हसीना की सरकार की नीतियों की आलोचना की, जबकि उनकी सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और विदेशी पत्रकारों की जांच को सीमित कर दिया।

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हसीना का राजनीतिक सफर एक विरोधाभासी चित्र प्रस्तुत करता है, उन्होंने देश को आर्थिक विकास की ओर अग्रसर किया लेकिन लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों की अवहेलना की।